Monday, December 12, 2016

Royal (k)now-how!




आजकल भागमभाग के कश्मकश में,
कुछ पल सुकून के,
बहुत कुछ सिखा जाते हैं।

बेपरवाह और खुलकर, खिखिलाकर हंसना,
कुछ पल के लिए ही,
बहुत कुछ दिखा जाते हैं

रोज़मर्रे की दौड़ में, आगे-पीछे की सोच में,
व्यर्थ और बेमतलब तेज़ रफ़्तार के विचार,
बहुत कुछ भुला जाते हैं।

कभी गुज़रे पलों की निरर्थक जांच,
कभी आने वाले पलों की अर्थहीन चिंता,
इस एक पल को मिटा जाते हैं।

आखिर ऐ मन, तू चाहता क्या है?
शांति? ख़ुशी? प्यार? या कुछ और?
और सोचने की बात ये है,
कि ये सब तू चाहता - कब है?
गुजरे पलों में? या
आने वाले पलों में?
या अब - इस एक पल में।

कल के पन्नो को मैं पढ़ तो सकती हूँ,
पर बदल नहीं सकती,
और आने वाले कल की कोरे पन्नो में,
मैं न तो लिख सकती हूँ, न जी सकती।

फिर भी मैं बहुत कुछ कर सकती हूँ,
शांति, ख़ुशी, प्यार, और बहुत कुछ पा सकती हूँ
क्योंकि मेरे पास ये एक पल है,
आशापूर्ण, अनमोल, असीमित।

कल और कल के बीच,
मेरे पास आज है।

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